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Chandra prabha Kumar

Abstract

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Chandra prabha Kumar

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नए फूल खिले

नए फूल खिले

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  सूखे आवरण अनार के झूम रहे ,

  सहज ही नूतन पुष्प खिल रहे ।

  प्रकृति सहअस्तित्व की मिसाल,

  नव पुरान युगपत् विटप डाल। 


  वो जीर्ण शीर्ण एवं ये नवीन

  दोनों एक ही जगह आसीन,

   प्रकृति का अनुपम विधान,

   फूलों से भर गया वितान। 


  क्यों दु:ख मनाएँ बीते वैभव का,

  हम स्वागत करें नई कलियों का,

  नव फूलों से फिर श्रृंगार हुआ

 अनार वृक्ष फिर से हरा भरा हुआ। 


  सुख के दिन फिर आते हैं,

  दु:ख के दिन चले जाते हैं। 

  दुःख के बाद सुख आता है,

  तो दु:ख वरदान हो जाता है।


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