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Kartik Sharma

Abstract Inspirational

4  

Kartik Sharma

Abstract Inspirational

नदी

नदी

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नदी किनारे के पेड़ शायद किसी के नहीं होते न मेरे, न तुम्हारे, होते हैं तो शायद हम सबके उन जामुनों और आमों पर मेरा, तुम्हारा, हम सब का हक़ होता है, उन्हें तोड़ने पर कोई तुम्हें मारेगा-पिटेगा नहीं, न कोई गाली देगा, शायद समाजवादी इसी तरह के पेड़ों को ढूंढने की कोशिश करते हैं पर उन्हें क्यों नहीं मिला अब तक कोई ऐसा पेड़ और शायद पूंजीवादी इसी तरह के पेड़ों से नफ़रत करते हैं पर उन्हें भी क्यों नहीं मिला अब तक कोई ऐसा पेड़ ।।१।।

नदी किनारे के चो शायद किसी के नहीं होते, न मेरे, न तुम्हारे, होते हैं तो शायद हम सबके, उन छोटे बड़े चो पर मेरा, तुम्हारा, हम सब का हक़ होता है, उन में तैरने पर कोई तुम्हें मारेगा-पिटेगा नहीं, न कोई गाली देगा, शायद समाजवादी इसी तरह के चो को ढूंढने की कोशिश करते हैं पर उन्हें क्यों नहीं मिला अब तक कोई ऐसा चो, और शायद पूंजीवादी इसी तरह के चो से नफ़रत करते हैं पर उन्हें भी क्यों नहीं मिला अब तक कोई ऐसा चो ।।२।।

नदी किनारे बरगद के पेड़ शायद किसी के नहीं होते, न मेरे, न तुम्हारे, होते हैं तो शायद हम सबके, उन बरगद के पेड़ों की शीतल छाया पर मेरा, तुम्हारा, हम सब का हक़ होता है, उन पर पींग डाल झूटने पर कोई तुम्हें मारेगा-पिटेगा नहीं, न कोई गाली देगा, शायद समाजवादी इसी तरह के बरगद के पेड़ों को ढूंढने की कोशिश करते हैं पर उन्हें क्यों नहीं मिला अब तक कोई ऐसा बरगद, और शायद पूंजीवादी इसी तरह के बरगद के पेड़ों से नफ़रत करते हैं पर उन्हें भी क्यों नहीं मिला अब तक कोई ऐसा बरगद ।।३।।

नदी किनारे के जलाशय शायद किसी के नहीं होते, न मेरे, न तुम्हारे,

होते हैं तो शायद हम सबके, उनके मीठे पानी पर मेरा, तुम्हारा, हम सब का हक़ होता है, उनसे पानी भरने पर कोई तुम्हें मारेगा-पिटेगा नहीं, न कोई गाली देगा, शायद समाजवादी इसी तरह के जलाशयों को ढूंढने की कोशिश करते हैं पर उन्हें क्यों नहीं मिला अब तक कोई ऐसा जलाशय, और शायद पूंजीवादी इसी तरह के जलाशयों से नफ़रत करते हैं पर उन्हें भी क्यों नहीं मिला अब तक कोई ऐसा जलाशय ।।४।।

नदी किनारे के फूल पत्ते शायद किसी के नहीं होते, न मेरे, न तुम्हारे, होते हैं तो शायद हम सबके, उनकी खुशबू पर मेरा, तुम्हारा, हम सब का हक़ होता है, उन्हें तोड़ने कोई तुम्हें मारेगा-पिटेगा नहीं, न कोई गाली देगा, शायद समाजवादी इसी तरह के फूल पत्तों को ढूंढने की कोशिश करते हैं पर उन्हें क्यों नहीं मिला अब तक कोई ऐसा फूल पत्ता, और शायद पूंजीवादी इसी तरह के फूल पत्तों से नफ़रत करते हैं पर उन्हें भी क्यों नहीं मिला अब तक कोई ऐसा फूल पत्ता ।।५।।

नदी किनारे के शमशान घाट शायद किसी के नहीं होते, न मेरे, न तुम्हारे, होते हैं तो शायद हम सबके, उस चिता पर मेरा, तुम्हारा, हम सब का हक़ होता है, उन में जलाने पर कोई तुम्हें मारेगा-पिटेगा नहीं, न कोई गाली देगा, शायद समाजवादी इसी तरह के शमशान घाटों को ढूंढने की कोशिश करते हैं पर उन्हें क्यों नहीं मिला अब तक कोई ऐसा शमशान घाट, और शायद पूंजीवादी इसी तरह के शमशान घाटों से नफ़रत करते हैं पर उन्हें भी क्यों नहीं मिला अब तक कोई ऐसा शमशान घाट ।।६।।

अरे! नदी ही किसी की नहीं होती,  इस पर सबका हक होता है, मेरा तुम्हारा, हम सब का, तो फिर हम इसे गंदा क्यों करते हैं ?


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