यदि रात बोल पाती
यदि रात बोल पाती
दोस्तों सच में यदि रात बोल पाती,
रात को सच में पाप ना कोई होता।
कम से कम रात में तो कतई नहीं,
रात इंसान की तरह बिकती नहीं।
यदि रात हक़ीक़त में बोल सकती,
तो बहुत शरीफ़ मुज़रिम नहीं होते।
यदि रात सचमुच में बोलने लगती,
कोई शैतान-हैवान ज़ुल्म न करता।
जब भी किसी नारी से ज़ुल्म करते,
रात बोलकर उनको बचाया करती।
दुआ करते हैं ईश्वर अल्लाह से हम,
नारी को अब तो सम्मान देना हमने।
यदि रात बोल पाती तो अच्छा होता,
रात को नारी सुरक्षित सदा ही रहती।
सारी रात आज़ादी से विचरण करती,
बिना डर के बेख़ौफ़ घूमा सदा करती।