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अजय एहसास

Abstract

3.1  

अजय एहसास

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नैनों की भाषा।।

नैनों की भाषा।।

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मूक रहो कुछ ना बोलो, तब भी सब समझ ही जाते हैं

हम नही समझते हैं कुछ भी, ये सोच के सब इठलाते हैं

जब होठ हो चुप और नैन मिले, ये प्रेम की इक परिभाषा है

हिन्दी,अंग्रेजी, उर्दू नहीं, कहते इसे नैनों की भाषा है।


हो मेला, बजार, परिवार कहीं, नैनों से बात कर लेते हैं

बस ताक झांक कर नैनों में, दिल की किताब पढ़ लेते हैं

लगता है दृष्टि देख उनकी, अब और न कोई आशा है

हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू नहीं, कहते इसे नैनों की भाषा है।


पुतली को दायें बनायें कर, कुछ पाठ पढ़ाने लगते हैं

भौहों को ऊपर नीचे कर, कोई बात बताने लगते हैं

शुरुआत हुई इन आंखों से, इन आंखों ने ही फांसा है

हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू नहीं, कहते इसे नैनों की भाषा है।


आंखों से जब आंखें मिलती, दिल की धड़कन बढ़ जाती है

जो बातें कहने लायक ना, आंखें उसको कह जाती है

उम्मीद की किरणें जगती है, आंखों मे कभी निराशा है

हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू नहीं, कहते इसे नैनों की भाषा है।


ये प्रथम बार जब मिलते हैं तो दिल की बगिया खिलती है

इस दूजे में खो जाती है, मखमल ख्वाबों के सिलते हैं

अन्तर्मन गदगद हो जाता, नैनों ने फेंका पासा है

हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू नहीं, कहते इसे नैनों की भाषा है।


पलकें जो झुकी तो शरमाना, पलकें जो उठी तो मुस्काना

नैनों के पथ पर चल राही और उनके दिल में उतर जाना

नैनों की भाषा समझोगे, 'एहसास' की तुमसे आशा है

हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू नहीं, कहते इसे नैनों की भाषा है।


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