नारी
नारी
नारी तू केवल श्रद्धा है,
सीता सा संयम है तुझमे,
मणिकर्णिका का साहस भी तुझमे,
दुर्गा सा धैर्य है तुझमे,
माता का वात्सल्य भी तुझमे।
इस जग ने फिर भी तेरा मूल्य प जाना,
इस जग ने फिर भी तुझे तुच्छ है माना,
क्यों इतना सहती है तू ?
हर कदम पर परीक्षा देती है तू,
कभी बेटी बनकर, कभी पत्नी,
कभी माता बनकर, कभी प्रेमिका।
फिर भी तेरा धैर्य है अद्धभुत,
हर कदम पर साहस है अद्धभुत,
क्यों सहती है तू ?
क्यों आँसुओं में भी मुसकाती है तू ?
तू वास्तविकता है या कवि की कल्पना ?
तू देवी है या अजीव मूरत कोई ?
आज मैं बताती हूँ पहचान मेरी,
ना मै देवी, ना मै कल्पना,
ना मुझमे अद्धभुत शक्तियों की स्थापना,
पर हाँ, मैं हूँ एक नारी,
शक्ति मुझमे तुमसे है,
तेरी कल्पना और श्रद्धा से है।
जितनी तू मुझमें श्रद्धा रखे,
उतनी मैं तेरी देवी,
जितना मुझे तिरस्कृत करे,
उतनी वेदना कोई,
महापृलय का दर्शन कोई
एक माटी की मूरत कोई,
हाँ मैं हूँ एक नारी,
हाँ मैं हूँ एक नारी।