कुरुक्षेत्र की भूमि
कुरुक्षेत्र की भूमि
हे कुरुक्षेत्र की भूमि,
तुझे शत् शत् नमन,
तू ही जननी,
तूने देखा सबका मरण,
अभिमन्यु हो या ईरवन।
पुत्र हो या पौत्र,
तुझे लगे क्षण मात्र,
निष्पक्ष होकर निर्णय लिया,
तूने निडर होकर सबको समाया,
अपनी आँचल में सबको सुलाया।
वधुओं की त्राहि की हाहाकार,
माताओं की वेदना की पुकार,
तूने देखा कान्हा को शापित होते,
और कुन्ती को पुत्र को खोते।
तूने देखीं अर्जुन की विडंबना,
और कृष्ण का विश्वरूप भी,
तूने देखीं चक्रव्यूह की रचना,
और भीष्म की शयनशय्या भी।
तू ही विनाश का प्रारंभ,
तू ही अंत भी,
तू ही मृत्यु का आरंभ,
तू ही नयी पीढी की जननी भी।
तेरे ही रक्त रंचित शरीर से,
उपजे नयी पीढी के बीज,
तेरे ही रक्त रंचित शरीर से,
रखी गई नये विश्व की नींव।
तू मृत्यु ही सही, ममता भी है,
तू शरीर ही सही, आत्मा भी है,
जो कभी मरती नहीं,
हर पीढी में अमर है,
जो निर्जीव नहीं,
सजीव है, सुन्दर है।
हे कुरुक्षेत्र की भूमि,
तुझे शत् शत् नमन,
हे कुरुक्षेत्र की भूमि,
तुझे शत् शत् नमन।