कलम से रूबरू
कलम से रूबरू
आज एक अर्से बाद कलम उठाया है,
या शायद खुद को जगाया है,
कुछ लिखते वख्त आवांज यूँ आयीं,
जैसे कोई बोले, याद तुम्हारी बहुत आईं।
देखा तो कलम मुझसे पूछतीं,
कहाँ खो गयी थी दोस्त मेरी ?
क्या याद नहीं आई तुम्हे हम सबकी
ना कागज को देखा तुमने,
ना कलम की याद तुम्हे आईं।
शिकायत करने का है हक तुम्हें,
मुँह मोड़ने का भी हक है,
आज तुम्हारी आई है याद,
एक अर्से बाद नींद से जगी हूँ आज।
कुछ लिखने के लिए फिर कलम उठाऊगी,
कुछ अल्फाजों को कागज पर फिर से उतारूँगी,
कभी साथ ना छोड़ने का वादा है ये,
कभी हाथ ना छोड़ने का वादा है ये।
