STORYMIRROR

Subhash Sharma

Abstract Classics Inspirational

4  

Subhash Sharma

Abstract Classics Inspirational

"नारी हूँ "

"नारी हूँ "

1 min
245



नारी हूूँ, नारी हूूँ,मैं नारी हूूँ 

नर को जनने वाली मैं ही नारी हूँ।

जग में इक पहचान मिले,

मान मिले,सम्मान मिले,

मैं भी हूँ,अभिमान जगे।

मस्तक स्वाभिमान सजे।


मैं इसकी अधिकारी हूूँ।

नर को जनने वाली मैं ही नारी हूँ

नारी हूँ, नारी हूँ, मैं नारी हूँ 

ना ही हूं भूखी दौलत की,

ना भूखी शौहरत की,

बस थोड़ा अपनापन हो

और हो थोड़ा भरोसा।


बस चाहूं इतनी हकदारी हूँ।

नर को जनने वाली मैं ही नारी हूूँ

नारी हूूँ, नारी हूँ,मैं नारी हूँ

p>

सुख-दुख सबका अपना मानूं,

हर कर्तव्य निबाहूं,

गृहस्थ संजोए,जान लगा दूं,

कुछ न फिर भी चाहूं।


हर रात सुबह की करती, मैं तैयारी हूँ।

नर को जनने वाली मैं ही नारी हूूँ

नारी हूँ, नारी हूूँ, मैं नारी हूँ

संघर्षों से मैं ना घबराऊं,

मुश्किल में भी मैं डट जाऊं,

घर-संसार बचाने को मैं

तूफानों से भी भिड़ जाऊं।


आ जाये प्रलयंकारी अड़ जाती हूूँ।

नर को जनने वाली मैं ही नारी हूूँ

नारी हूँ नारी हूँ मैं नारी हूँ 

नारी हूँ, नारी हूँ, मैं नारी हूँ

नर को जननेवाली मैं ही नारी हूं।


Rate this content
Log in

More hindi poem from Subhash Sharma