ना जाने क्यों, अब भी कुछ।
ना जाने क्यों, अब भी कुछ।
ना जाने क्यों, अब भी कुछ,
पुरुष घमंडी , समझते नहीं।
हर नारी का, तिरस्कार बस,
सदा चाहते, बेशर्म ऐसे भी।
नारी का ये, सम्मान ना करें,
अपमान ये, हमेशा ये करते।
नारी देवी, समान समस्त है,
सच कहा, पर पन्नों पर ये है।
सदा मुझे, लिखना नारी पर,
देवी सदा, समझें सब पुरुष।
प्रयास ही, सदा करना मुझे,
नारी देवी, पूज्य सभी सदा।