अभिमान।
अभिमान।
अश्रु पूरित इन नयनों से, श्रद्धा रूपी पुष्प चढ़ाकर,
पूजा करूँ मैं तुम्हारी, सुन लो अब अरज हमारी।।
मन की मलिनता दूर भगाकर, हृदय में तुमको बसा कर,
आरती करूँ मैं तुम्हारी, सुन लो करुण पुकार हमारी।।
हे ! दुख भंजन, कृपा निधान, कर दो मेरा भी कल्याण।
नाम तुम्हारा सुनकर आया, वरद हस्त का दे दो वरदान।।
तुम तो जग के अंतर्यामी, मैं सेवक ठहरा अज्ञानी।
बीच भंवर में नैया मेरी, डूब रहा मेरा अभिज्ञान।।
भिक्षुक बन बैठा दर पर, तुमसे दया की भीख लिए ।
"नीरज, अभागा तुम्हारी कृपा का, दूर करो मेरा अभिमान।।