मुल्क और मीत
मुल्क और मीत
मितवा मुझे तो जाना होगा
दिल को तो समझाना होगा
वतन का साथ निभाने को
अपनों का हाथ बंटाने को
मुझे सरहद पे जाना होगा।
मितवा..
मितवा अभी तुम आये हो
आंखों में ख़्वाब बसाये हो
थे आतुर तुम तो आने को
क्यूँ आतुर फिर जाने को?
ये बात मुझे बताना होगा।
मितवा मुझे..
ये मुल्क ही तो मेरा मीत है
रग रग में बसा ये संगीत है
एक नया गीत बनाने को
फिर से देशप्रेम जगाने को
सरगम मुझे सजाना होगा।
मितवा..
हाथों की मेंहदी छुटी नहीं
रातों की खुमारी टूटी नही
सुबह कहाँ हुई जगाने को
क्यूँ आतुर विरह पाने को
मुझको ये समझाना होगा
मितवा ..
सीमा पर जब चलती गोली
लहू खेलती तब हमसे होली
ख़ुशियों के रंग मिलाने को
सबके घर दीया जलाने को
सरहद पे दीप जलाना होगा।
मितवा..
कुहू कुहू जब कोयल बोले
कुहक कुहक के दिल डोले
मिलन की राग जगाने को
विरह की आग बुझाने को
तुझे समंदर लहराना होगा।
मितवा..
सरहद पे जब जंग छिड़ी हो
सीमा पार दुश्मन भिड़ी हो
नहीं वक्त कुछ समझाने को
दुश्मन को मार भगाने को
बस मुझ को तो जाना होगा।
मितवा..
मितवा तुझ को आना होगा
अपना मुझ को बनाना होगा
कसमों को याद दिलाने को
जीवन भर साथ निभाने को
लौट के तुम को आना होगा।
मितवा...