मत छुपाओ मेकअप से जख्मों के निशान
मत छुपाओ मेकअप से जख्मों के निशान
मत छुपाओ मेकअप से जख्मों के निशान
ओ नारी....
मत छुपाओ अब
मेकअप से जख्मों के निशान,
देख लेने दो जमाने को
भेड़िया रूपी इंसानों की असलियत,
तोड़ दो पैरों में बंधे बेड़ियों को
छोड़ दो ऐसे दुष्ट भेड़ियों को
मत सहो अब और कोई जुल्म
देख लेने दो असलियत दुनियां को।
माना कि,
परम्पराओं को निभाने के चक्कर में
बोझिल रिश्ते के बोझ को निभा रही हो।
हर रोज गाली-गलौज,लात-जूते खा रही हो।
ओ नारी.....
मत छुपाओ अब
मेकअप से जख्मों के निशान,
क्या छल्ली हुए आत्माओं
को भर पाओगी इन मेकअप से????
नही न???
रोज मरते तड़पते आहों को
भर पाओगी मेकअप से????
नही न
?????
तो फिर,,,,,
ढकोसला क्यों,दिखावा क्यों????
नारी मन कोमल जरूर है
पर,कमजोर नही।
ले आओ उस दरिंदों को सड़क पर,
कर दो उसे कानून के हवाले,
लगा दो हैवानों पर वो सभी धाराएं,
जो महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान के लिए
कानून द्वारा बनायी गयी है।
इसी दिन के लिए तो महिलाओं की
हक के लिए कुछ कानून है।
इंसाफ तो एक न एक दिन जरूर मिलेगी,
हैवान को किये की सजा भी जरूर मिलेगी।
जब चक्की पीसेगा जेल में
पसीने बहाने पड़ेंगे बेल में,
डंडे पड़ेंगे जब तबातोड़।
मानसिक, आर्थिक और शारीरिक
प्रताड़नाएं जब मिलेगी खुद उन्हें,
पद-प्रतिष्ठा बिस्तर सहित गिरेंगे जब धड़ाम।
कोई काम के नही रहेंगे जब
सब
तब अक्ल ठिकाने आ जाएगी।
अभी तो पैसे और शरीर की गर्मी है न,
तब तक सब गर्मी निकल जायेगी
होंशोहवाश ठिकाने लग जाएंगे।।
क्योंकि,
इंसाफ की चक्की धीमी जरूर है
पर,पीसती बहुत बारीक है।
इसलिए लोकलाज की बेड़ियों को तोड़कर
जुल्म और अत्याचार को न सहकर
मान-मर्यादा,रिश्ते-नाते को तख्ते पर रखते हुए
ऐसे नर्क और अत्याचार से बाहर आओ।
दुनियां बहुत बड़ी है।
कुएं की मेढ़क बन खुद को
और
खुद के आत्मसम्मान को हर रोज
मार खाकर,प्रताड़ित होकर खत्म मत करो।
अपने हक के लिए आवाजें उठाओ।
आत्मनिर्भर बनकर
दो रोटी चैन से कमाकर खाओ।
अपने लिए आवाजें उठाओ,आवाजें उठाओं।
अब मेकअप से भूलकर भी जख्मों को मत छुपाना,
हैवानों द्वारा किये गए हर क्रूरता को बाहर लाना,
दरिंदों को किये की सजा दिलाना
और खुद आत्मनिर्भर बनकर
शकुन की सांस लेना।
मौलिक और स्वरचित
@अनुजा भारती
