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मस्ज़िद की नमाज़

मस्ज़िद की नमाज़

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जब चुुभने लगती कानों को मस्ज़िद की नमाज़,

तब उनको भी उकसाती है घंटों की आवाज़।

बार बार तुम ये दोहराते , तैमूर, चंगेज खान,

याद तुम्हें फिर क्यों नहीं आते है अब्दुल कलाम।


माना सोमनाथ मंदिर को कभी गजनी नेे फोड़ा था,

पर तुमको भी याद रहे मस्जिद तुमने भी फोड़ा था।

औरंगजेब की ग़लती थी तुम माँग रहे भुगतान,

वो जो चाय पिलाने वाले गाँव के अहमद खान।


यदि राम को रहता याद रावण का अभिमान,

कभी न कहते लक्ष्मण को, ले लो रावण से ज्ञान।

इसी तरह मंदिर मस्ज़िद पे लगती रही जो आग,

सोने की चिड़िया भारत कभी पूरे न होंगे ख़्वाब।



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