मृगनयनी
मृगनयनी
मृगनयनी बनकर ,
भटकूँ यहाँ वहाँ
मिले बसेरा मन भर
सजाऊँ हृदय तन भर ,
जलाऊँ दीप रात भर
बुझाऊँ लो न एकबार ,
मनाऊँ दिपोत्सव हरबार
मृगनयनी बनकर ,
भटकूँ यहाँ वहाँ
मिले बसेरा मन भर
सजाऊँ हृदय तन भर ,
जलाऊँ दीप रात भर
बुझाऊँ लो न एकबार ,
मनाऊँ दिपोत्सव हरबार