STORYMIRROR

Shamim Rayeen

Tragedy

2  

Shamim Rayeen

Tragedy

मर चुका हूं

मर चुका हूं

1 min
263

वीर जवानों की अगर ये धरती है

तो निर्भया आसिफा और प्रियंका आख़िर क्युं मरती हैं।


आख़िर कब तक मोमबत्तियां जलाकर शोक मनाओगे

अपने अंदर के वीर को आख़िर कब जगाओगे।


ख़ून के आसुओं को घूंट घूंट के पी रही है

भारत मां बड़ी तकलीफ़ में जी रही है।


पर किसी को के पड़ी है सब मस्त हैं अपने में

आज की फ़िक्र छोड़ कल के सुहाने सपने में।


मगर आज लहू लुहान है तो कल ख़ून का दरिया होगा

फ़िर उससे पार निकलने का ना कोई ज़रिया होगा।


पर मैंने भी क्या किया बस सह रहा हूं

मर चुका हूं मैं भी अब ज़िन्दा कहा हूं।


बदलो ख़ुद को पहले फ़िर समाज को

हैवानियत के फैले हुए इस सामराज को।


उठो फ़िर ज़रा और मशालें जला लो

दरिंदों से बेटियों की इज़्ज़त बचा लो।


Rate this content
Log in

More hindi poem from Shamim Rayeen

Similar hindi poem from Tragedy