मोड़
मोड़
पहाड़ सी बड़ी जिंदगी में
आते हैं बहुत सारे मोड़
उनमें से कुछ खूबसूरत होते हैं
"जन्नत" के ख्वाब जैसे हसीन
जो ले जाते हैं हमें
फूलों की वादियों में
झरनों वाली घाटियों में
जहां मज़े से रहते हैं
स्नेह, प्रेम और वात्सल्य
सब के सब मिलजुल कर।
जहां आशा घर बुहारती है
विश्वास पानी भरता है
धैर्य की धीमी धीमी आंच पर
लक्ष्य रूपी भोजन पकता है।
जहां सकारात्मकता के आसन पर बैठ
नवीन विचारों के चम्मच से
उस भोजन को ग्रहण किया जाता है
और "गम" रूपी हाजमोला खाकर
उसे पचाया जाता है।
तभी तो चैन और सुकून की
ऐसी सुखद नींद आती है कि
कोई भी मुसीबत
ख्वाबों में आने से भी कतराती है।
मगर , इस मोड़ से एक
दूसरा रास्ता भी जा रहा है
देखने में वह थोड़ा आसान लगता है
लेकिन उसमें आगे जाकर
बहुत सी झाड़ियां, कांटे, पत्थर
गड्ढे, भरे पड़े हैं।
यहां पर नफरतों के जंगल हैं
हिंसा , झूठ , बेइमानी , मक्कारी
यहां पर ठाठ से रहते हैं
"अहम्" के गगनचुंबी भवन में
ईर्ष्या और द्वेष दोनों भाई
तान खूंटी रात भर सोते हैं
"चुगली" की रसोई में
लच्छेदार रबड़ी बनाई जाती है
और नकारात्मकता रूपी चम्मच से
बड़े प्रेम से खाई जाती है।
इसी रास्ते पर आगे जाकर
लालच की गहरी खाई आती है
जिसमें आदमी की बुद्धि
न जाने कहां खो जाती है।
बस, नजर आता है यहां
केवल और केवल
एक दुखद और भयानक अंत।
यह इंसान को तय करना है कि
वह किस मोड़ पर
कौन सा रास्ता चुनता है ।
कभी कभी "शॉर्ट कट" के चक्कर में
ग़लत रास्ता चुन लिया जाता है
लेकिन , गलतियां सुधार मांगती हैं
ग़लत रास्ते पर आगे बढ़ने के बजाय
पीछे लौटना ही श्रेयस्कर है ।
हर मोड़ पर
कोई न कोई सबक जरूर होता है
उसी की रोशनी में ही
धीरे धीरे मंजिल की ओर बढ़ना है।