मन में फिर एक बात उठी है
मन में फिर एक बात उठी है


मन में फिर एक बात उठी है
ख़्वाहिशों की बस्ती से
जहाँ बिताया था हर लम्हा
ख़ामोशी की कश्ती मे
कोहरे की चादर सी ओढ़े
दिल के वो कुछ बंद झरोखे
जाने कितने अरमान खुद में
आज भी समेटी सी है..
मन में फिर एक बात उठी है
ख़्वाहिशों की बस्ती से
जहाँ बिताया था हर लम्हा
ख़ामोशी की कश्ती मे
नदियों के वो बहते धारे
कहने को तो चलती है आगे
पर अपने उद्गम को फिर से
पाने को मचलती सी है
मन में फिर एक बात उठी है
ख़्वाहिशों की बस्ती से
जहाँ बिताया था हर लम्हा
ख़ामोशी की कश्ती मे
बारिश की वो नन्ही बूंदे
कोने में बैठी आंखे मूंदें
सूखी एक ज़मीं पर जैसे
गिरने को तड़पती सी है
मन में फिर एक बात उठी है
ख़्वाहिशों की बस्ती से
जहाँ बिताया था हर लम्हा
ख़ामोशी की कश्ती मे