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Pradeep Nair

Abstract

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Pradeep Nair

Abstract

यूँ तो है लोगों का मेला यहाँ

यूँ तो है लोगों का मेला यहाँ

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यूँ तो है लोगों का मेला यहाँ

चेहरे सब अजनबी पर देखूं जहाँ

अपनी ही धुन में भागता हर शख्स

जाना चाहता हैं जाने कहाँ


उलझनों की कडियों में उलझा हुआ

फिर भी सपनो की दुनिया बसाता हुआ

लेकर साथ कुछ अधुरी कहानियाँ

जाना चाहता हैं जाने कहाँ


यूँ तो है लोगों का मेला यहाँ

चेहरे सब अजनबी पर देखूं जहाँ


वक्त की आँधी को चीरता

अपने ही अस्तित्व को तलाशता

सदियों से चला जो ये कारवाँ

जाना चाहता हैं जाने कहाँ


यूँ तो है लोगों का मेला यहाँ

चेहरे सब अजनबी पर देखूं जहाँ


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