मन को जीतो जगत को जीतो
मन को जीतो जगत को जीतो
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आत्मानुभूति के लिए, अपने मन को टिकाओ
बार बार अभ्यास करके, एकाग्रता को बढ़ाओ
भागेगा ये मन आपका, बनकर घोड़ा बेलगाम
आयेंगे संकल्पों में भी, व्यर्थ के अनेक तूफान
भटकते मन को बार बार, देना समर्थ संकल्प
मिटा देना आये अगर, कोई व्यर्थ का विकल्प
व्यर्थ संकल्पों से तुम्हें, मुकाबला करना होगा
किये हुए हर विकर्म का, जुर्माना भरना होगा
क्यों ना कहना मानेगा, जब है ही मन तुम्हारा
जीत लिया यदि मन को, तो जीतोगे जग सारा।