मन की परतों में रम जाने दो
मन की परतों में रम जाने दो
भूली बिसरी यादों को
मन की परतों में रम जाने दो
थकते चुकते रिश्तों पर
कुछ तो प्रेम सुधा छलकाने दो।
जीवन चकिया अलबेली
बिन हाथ घुमाये चलती रहती
निज सुख दुःख के दानों को
मुख में ले दुर दुर करती रहती
सब नीरस संघर्षों को
धीरे धीरे पिस दर जाने दो।
जेठी अंगारों में जल,
तिलमिलाता वसुधा का तन-मन
अवरुद्ध शुष्क कंठ उसका
फिर व्यथा कथा सुनाता प्रति-पल
तब जलद मचल कर कहता
धरणी की चुनरी सरसाने दो।
द्वारे की निम्बिया जब
लहर लहर कर देती शीतल छाँव
तपते प्यासे अंतर्मन को
मिल जाया करते नूतन पाँव
दबी दबी आशाओं में
नवल ज्योतिपुंज झलकाने दो।
थकते चुकते रिश्तों पर
कुछ तो प्रेम सुधा छलकाने दो
भूली बिसरी यादों को
मन की परतों में रम जाने दो।
