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Annapurna Bajpai

Abstract

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Annapurna Bajpai

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कैसे भूल पाओगे

कैसे भूल पाओगे

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देकर संताप बुजुर्गों को तुम कहां जाओगे,

वंचित रह आशीषों से सुख कहाँ पाओगे।

भूल रहे क्यों माँ की ममता ?

स्नेह पिता का जिसमें दम था 

अभिलाषाये भेंट चढ़ा कर  

ढूंढ रहे हो कैसी समता ?


हलराना-दुलराना तुम भूल कहाँ पाओगे

वंचित रह आशीषों से सुख कहाँ पाओगे।

धूल उड़ाती कच्ची राहें,

मात-पिता की फैली बाहें

भर क्यों जाती हैं नित आंखें

कभी न लेना उनकी आहें


हर दुःख से उनका टकराना भूल कहाँ पाओगे

वंचित रह आशीषों से सुख कहाँ पाओगे।

वट की छाया बनकर रहते

धूप ताप सबकुछ वह सहते

 नही कामना मन में कोई 

कर्मफलों की चाह न रखते 


निश्छल प्रेम, भूल कहाँ पाओगे

वंचित रह आशीषों से सुख कहाँ पाओगे ।

दाना चुग्गा तुमको देते

नया बसेरा तुम कर लेते

बिखरी सी मुस्कान संजोये

खालीपन की नैया खेते

क्रंदन उनके अंतस का, भूल कहाँ पाओगे

वंचित रह आशीषों से सुख कहाँ पाओगे।


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