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BANDITA Talukdar

Abstract

4.0  

BANDITA Talukdar

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मन की डोर

मन की डोर

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मन की डोर छूटते ही जा रही है

लगता है कभी कभी भाग जाऊँ।


सब सौर चार के कही अनजान सफर पे

मुश्किल है राहें, क्यूंकि अनजान है दिल की आहें।


फिर सोचती हूँ, क्या होंगे भाग के

भागे ही तो मिलेगा नाम जी लेती हूँ गुमसुम ही सही।


थोड़ी थोड़ी करके जुड़ लू पूरे आसमान की

एक मुठ्ठी अपने नाम कहीं !


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