श्राद्ध
श्राद्ध
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शब्दों को आज़ाद तो
उसी दिन कर दी थी
जिस दिन तुमने
मेरे शब्दों का श्राद्ध
कर दिया था।
जो जुबां से नहीं बोल पाती थी
वो शब्दों से ही तो बोलती थी।
तुमने तो ऐसा घायल किया
मेरे हाथों की जुबां भी
एक ही बार में छिन ली...