ममत्व
ममत्व
माँ के तेल हल्दी के
दागों वाला दुपट्टा
सर पर बाँधे
बचपन मे खिलाती थी,
मैं निर्जीव गुड़िया और
उस पर लुटाती थी अथाह प्यार
जो माँ से पाया था
जिन्दगी की गंगा
बहती रही अनवरत
अपनी गति से
मैं प्रेम की गंगोत्री बनी रही
क्योंकि प्रकृति प्रदत्त
अमर वरदान है मुझे
मुझसे है अस्तित्व प्रेम
और करूणा का
और अपना अस्तित्व
बनाए रखने की
जद्दोजहद में
सर पर कफन बाँधे
लुटाती रही हूँ मैं प्यार
जिन्दगी पर
जो निर्जीव गुडिया में भी
फूँक दे प्राण
ऐ जिन्दगी मेरी ही गोद में
निहित है तेरा उत्थान।