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Wasim Khan

Classics Inspirational others classics

4.2  

Wasim Khan

Classics Inspirational others classics

मजदूरों के हालात बयां करने वाल

मजदूरों के हालात बयां करने वाल

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चलते चलते एक गरीब घर पहुंचने की तमन्ना को लेकर मर गया

सोया था थका हरा वो मजदूर जो रेल से कट कर मर गया 

बता रही थी सुखी पड़ी वहा रोटियां फठी पड़ी गठड़िया

सिरहाना ना मिल सका जिन सिरो को वो रेल की

पटरियां को सिरहाना बना कर सो गया 


ये बोलती नहीं कुछ गूंगी बेहरी हुकूमत हमारी

लगता है इसका भी ज़मीर मर गया 

जिंदगियां दुस्वार हो गई बसा हुआ चमन उजाड़ गया 

उस मजदूर परिवार जो सड़क हादसे में मर गया

जिनकी बदौलत पकती है तुम्हारे घर दो वक्त की रोटियां


आज उसी किसान मजदूर का का बच्चा भूख से बिलखता हुआ मर गया

ना जाने उन बच्चो की आंखो को अब नींद केसे आएगी

जिसका इंतजार था वो बाप कहीं हादसे में मर गया 

तुम्हारी रेल तुम्हारे जहाज तुम्हारी गाडियां ये किसी काम की नहीं है 


वो जो पहुंच ना सका अपने आशियाने तक

वो मजदूर पांव के छालो से मर गया 

अब तो हुकूमत ने भी के दिया आत्मनिर्भर बनो 

लगता है हुकूमत का भी ज़मीर मर गया।


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