मज़दूर
मज़दूर
सारी दुनिया में फैली हुई एक वबा है।
उस पर से मुझ को मिली ये सज़ा है।
कोई अब भी ज़माने के हाकिम से पूछे,
बता इसमें मेरी ये कैसी ख़ता है।
सब में बेबस हूँ लाचारो मज़बूर हूँ।
बस ख़ता है यही मैं मज़दूर हूँ।
नाज़ जिनको था सड़कें हैं लंबी बहुत,
उसे मेरे क़दमों से नपाया गया।
राह में थक कर जब भी सोया हूँ मैं,
मुझे रेल ट्रकों से दबाया गया।
हर क़दम पर मिली है मुझे सरहदें ,
हर सरहदों पर सताया गया।
ज़ुल्म पर सब्र मैं करता रहा,
मेरे सब्र को आज़माया गया।
मैं ज़ालिम की ज़ुलमत का दस्तूर हूँ।
बस ख़ता है यही मैं मज़दूर हूँ।
ऐ मेरे मुल्क तेरा एक हिस्सा हूँ मैं।
हर तरक़्क़ी में शामिल किस्सा हूँ मैं।
ये हुक़ूमत की नादानी या चूक है।
वबा पर भी भारी मेरी भूख है।
अपनी गरीबी के ग़म में मैं चूर हूँ।
बस ख़ता है यही मैं मज़दूर हूँ।
हाय मेरी बेबसी मुझे कहाँ ले गई।
ये दुनिया के बेकसी मुझे कहाँ ले गई।
अपने भी अब मेरे पराए हुए।
अजनबी अजनबी हर नज़ारे हुए।
इंसानों की इंसानियत से मैं दूर हूँ।
बस ख़ता है यही मैं मज़दूर हूँ।
