मजदूर है
मजदूर है
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हाथ से मेहनत करे मज़दूर हैं
कौन कहता हैं हमें मजबूर हैं
चाय की टपरी पे बच्चे तो हमीं
नाम छोटू से बड़े मशहूर हैं
शौक़ से करता नहीं मैं नौकरी
घर चलाने का यहीं दस्तूर हैं
सिलसिला ग़म का चलेगा उम्र भर
वो ख़ुशी का दौर काफ़ी दूर हैं
दिल ज्यादा प्यार में पड़ता नहीं
वो उसी के दर्द में मख्मूर हैं
शायरी में बोलता सागर तभी
शायरी में आज उसका नूर हैं
अनिकेत सागर