STORYMIRROR

अनिकेत सागर

Tragedy

3  

अनिकेत सागर

Tragedy

मजदूर है

मजदूर है

1 min
334

हाथ से मेहनत करे मज़दूर हैं

कौन कहता हैं हमें मजबूर हैं


चाय की टपरी पे बच्चे तो हमीं

नाम छोटू से बड़े मशहूर हैं


शौक़ से करता नहीं मैं नौकरी

घर चलाने का यहीं दस्तूर हैं


सिलसिला ग़म का चलेगा उम्र भर

वो ख़ुशी का दौर काफ़ी दूर हैं


दिल ज्यादा प्यार में पड़ता नहीं

वो उसी के दर्द में मख्मूर हैं


शायरी में बोलता सागर तभी 

शायरी में आज उसका नूर हैं


अनिकेत सागर



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy