मजबूत इरादा
मजबूत इरादा
अकेले अनजान सफर पर जाने के लिए जब मैं घर से निकला,
न कोई साथ न कोई सफर में मेरा हाथ पकड़ कर चलने वाला।
भय से दिल बार बार कांप रहा था कि नहीं जाना मुझे आगे,
जिंदगी को खुबसूरत तरीके से जीने की मन में लालसा थी थोड़ी,
चल पड़ अपनों का छोड़ साथ अपनी मंजिल की तलाश में,
चिंतित था मन ही मन कही ना कही आत्मविश्वास की कमी भी
कर रहा था मैं अनजान सफर की डगर पर चलतेचलते।
कितनी बार अंगुलियों पर दिन की गणना कर कामयाबी हेतु,
नये अवसरों की, नये मार्ग की तलाश में घूमता रहा।
संघर्षों की परिपाटी पर धीरे-धीरे समायोजन करते हुए मैं,
बेखौफ़ अपने कर्म पथ पर बढते हुए चिंताओं से मुक्त होता रहा।।