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Sudhir Srivastava

Abstract Tragedy

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Sudhir Srivastava

Abstract Tragedy

महिला दिवस का पाखंड

महिला दिवस का पाखंड

2 mins
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आइए ! एक बार फिर

महिला दिवस का पाखंड करते हैं,

महिला दिवस के नाम पर

औपचारिकता का प्रपंच करते हैं।


रोज रोज महिलाओं का अपमान करते हैं,

नीचा दिखाने का एक भी मौका नहीं गँवाते हैं,

उनकी हर राह में कांटे बिछाते हैं।

महिलाओं को बराबरी का दर्जा देते हैं

पर सच तो यह है कि हम सब

अपनी माँ बहन बेटियों को भी ठेंगा दिखाते हैं।


नारी तू नारायणी है का जितना गान करते हैं,

उससे अधिक हम उनका अपमान करते हैं।

नारी के प्रति श्रद्धा के दिखावे खूब करते हैं

बड़े बड़े भाषण, गोष्ठियां, दिखावा करते हैं


पत्र पत्रिकाओं में असंख्य लेख

कविता, कहानियां भी लिखते हैं,

परिचर्चा, वैचारिक चिंतन महिला हितों के नाम पर 

सिर्फ औपचारिकता निभाते हैं,

महिलाओं को साल में इस एक दिन

महिला दिवस के नाम पर सबसे ज्यादा बरगलाते हैं,


आज़ादी के पचहत्तर सालों में

हम महिलाओं को सुरक्षा का भाव तो दे न सके,

फिर भी हमारी बेशर्मी तो देखिए

महिला दिवस के नाम पर भी

महिलाओं को बरगलाने की कोशिशों में 

आज भी ‌‌एक कदम पीछे न हट सके।


सोचिए, विचारिए कितने ईमानदार हैं हम

अपनी माँ बहन बेटियों के प्रति 

वास्तव में कितने ईमानदार हैं हम ?

फिर महिला दिवस की जरूरत नहीं होगी,

महिलाओं को भी बेचारगी न महसूस होगी।


क्योंकि हम जानबूझकर 

उन्हें कमजोर होने का अहसास कराते हैं

क्योंकि कुछ भी हो जाय मगर

अपने बराबर उनके खड़े होने से

हम हीनता के भाव से डर जाते हैं।


माँ, बहन या बेटियों में भी हम पहले

महिला ही महिला को देखते हैं,

सिर्फ इसलिए महिला दिवस के नाम पर

हम धूल झोंकने का काम लगातार करते हैं,


अपनी जिम्मेदारियों की महज

औपचारिकता निभाते हैं

गर्व से फूले नहीं समाते हैं,

आठ मार्च को हम हर साल


हम मिलकर महिलाओं को बेवकूफ बनाते

महिला दिवस के नाम पर भरमाते हैं 

और अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाते हैं। 


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