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Sudhir Srivastava

Abstract

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Sudhir Srivastava

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मेरी छुटकी मेरी माँ

मेरी छुटकी मेरी माँ

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मेरी छुटकी बड़ी शरारती है

बड़ी हो गई मगर बहुत सताती है,

बचपना तो उसका गया ही नहीं जैसे

मौके बेमौके आज भी रुलाती है।

ऐसा नहीं कि हमें प्यार नहीं करती

पर आज भी हमसे नहीं डरती,

ये और बात है कि हमारी छुटकी है

पर हिटलर से तनिक भी नहीं कम है।

आज भी जब वो घर आती है

आँधी तूफान साथ लाती है,

कैसे भी पापा से डाँट मिले मुझको

आज भी वो ऐसे गुल खिलाती है।

जब तब जीना हराम कर देती है

सोते में रजाई चद्दर खींच ले जाती है,

मेरी झल्लाहट पर मुस्कुराती है

गुस्सा देख आकर लिपट जाती है।

सच कहें तो हमें भी अच्छा लगता है

उसकी शरारतों से घर जीवंत रहता है,

वरना ये घर अब घर कहाँ लगता है

जब विदा हुई वो, घर वीरान सा लगता है।

माना की वो आज भी शरारती है

मेरी खुशी सबसे बेहतर वो ही जानती है

माँ के जाने के बाद वो बड़ी जैसी लगती है

पर आखिर वो भी तो अभी बच्ची ही है।

बचपन में ही माँ हमें अकेला कर गई

हमें बीच मझधार में छोड़ गई,

छुटकी अचानक जैसे बड़ी हो गई,

हमारे लिए वो अपने सारे आँसू पी गई।

हम खुश रहें, आँसू न बहाएँ, बिखर न जाएं

इसीलिए शरारतें आज भी वो करती है,

छुटकी बनी रहकर भी वो आज

हमें हर समय चिढ़ाती, सताती रहती है।

उसकी शरारतों में भी उसका

प्यार दुलार ही नजर आता है,

उसकी खोखली खिलखिलाहट में

माँ के न होने का दर्द नजर आता है।

छुटकी दादी अम्मा सी बतियाती है

बात बात पर हुकुम चलाती है

क्या क्या कहें हम अपनी छुटकी के बारे में

गौर से देखता हूँ तो वो माँ नजर आती है। 



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