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Shramya Shetty

Abstract

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Shramya Shetty

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मेरे पिताजी

मेरे पिताजी

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सूट-बूट पहन कर

जाते हैं काम पर

अपनी तो परवाह नहीं

लेकिन काम करे जी भर कर।


जब मैं उन्हें पूछती

क्यों करते हो इतना काम

वे अपने चेहरे पर एक छोटी सी मुस्कान ले कहते हैं

तुम्हारे लिए बेटा तुम्हारे लिए।


अपने आप को भूखा रखकर

मुझे भरपेट खिलाते हैं

अपनी भी प्यारी सी गोद में

मुझे सुलाते हैं।


वह 1 दिन बीमार पड़ते तो कभी नहीं कहते

मैं आज काम पर नहीं जा रहा

हम एक दिन बीमार पड़ते तो हर पल कहते

मैं आज विद्यालय नहीं जा रहा।


रोज नई ऊर्जा ले उठते

कि आज मेरी बेटी कुछ कर दिखलाएं

एक ही सपना है उनका

मेरी बेटी मुझे सम्मान दिलाए।


सब कहते हैं

मां घर की लक्ष्मी होती है

हर एक को कहना चाहिए

पिता घर के परमेश्वर होते हैं।


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