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Supriya Devkar

Abstract

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Supriya Devkar

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मेरे घर

मेरे घर

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तुम बहुत ही खास हो

मेरे प्रिय घर

तुम्हारी छत्रछाया मे 

नही लगता डर

जज्बा दिखाया जिदंगी मे

अच्छा कुछ तो कर

तुम्ही ने सिखाया जीना 

उंचा रखके सर

ज्ञान देकर खूब पढाया

भगाया मन का डर

मिल जुलकर रहना सिखाया 

नारी हो या नर.


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