मेरे अपनों ने
मेरे अपनों ने
मुकद्दर ने हमें कभी, रुलाना नहीं छोड़ा।
मेरे अपनों ने हमें, झुकाना नहीं छोड़ा।
खुशियों की चाह में बस, दौड़ता ही रहा मैं!
मगर उसने हमें कभी छकाना नहीं छोड़ा।।
मुकद्दर ने हमें कभी, रुलाना नहीं छोड़ा।
मेरे अपनों ने हमें, झुकाना नहीं छोड़ा।
खुशियों की चाह में बस, दौड़ता ही रहा मैं!
मगर उसने हमें कभी छकाना नहीं छोड़ा।।