STORYMIRROR

मेरा स्वार्थ और उसका समर्पण

मेरा स्वार्थ और उसका समर्पण

1 min
399


मैनें पूछा के फिर कब आओगे,

उसने कहा मालूम नहीं

एक डर हमेशा रहता है ,

जब वो कहता है मालूम नहीं


चंद घड़ियाँ ही साथ जिए हम ,

उसके आगे मालूम नहीं

वो इस धरती का पहरेदार है,

जिसे और कोई रिश्ता मालूम नहीं


उसके रग रग में बसा ये देश मेरा,

और मेरा जीवन वो, ये उसे

मालूम नहीं

है फ़र्ज़ अपना बखूबी याद उसे, 

पर धर्म अपना मालूम नहीं


उसका एक ही सपना है,

इस मिट्टी पे न्यौछावर होने का

पर मेरे सपने कब टूटे ये उसे

मालूम नहीं


<

/p>

उसने कहा न बांधों मुझे इन रिश्तों में,

मुझे कल का पता मालूम नहीं

मैं हँस कर उसको कहती हूँ,

मेरा आज भी तुमसे और कल भी

तुमसे इसके अलावा मुझे कुछ

मालूम नहीं


वो कहता है तुम प्यार हो मेरा, पर

जान मेरी ये धरती है

ये जन्म मिला इस धरती के लिये,

ये वर्दी ही मेरी हस्ती है

कितनी शिकायतें कर लूँ उसकी,

पर नाज़ मुझे है उस पे कितना ये

किसे मालूम नहीं


फिर पछता के खुद से कहती हूँ ,

ये भी तो निस्वार्थ प्रेम है

जिसके आगे सब नत्मस्तक है ,

उसका समर्पण किसे मालूम नहीं


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Inspirational