"मेरा सफ़र"
"मेरा सफ़र"
बचपन से बड़े होने तक पल-पल मिलता है साथ माता-पिता का,
जब छूटता है यह हाथ तभी, इंसान जानता है रहस्य जिंदगी का।
बता रही हूँ अनुभव आपको, जब किया शुरू अकेले सफ़र यह जीवन का,
शायद आप भी जुड़ पाओ मेरी भावनाओं से, ऐसा यह किस्सा है दस्तूरों का।
आई जब ससुराल, किया नया सफ़र शुरू, यह अनुभव है मेरे नए जीवन का,
लगा जैसे हुआ नया जन्म मेरा, बदल गई पूरी दुनिया और नक्शा मेरे जीवन का।
भीड़ में पाया जैसे अकेली हूँ मैं, परायों में जो ढूँढना था साथ अपनों का,
सीखी थी जो तरकीबें आप से आज़माई सभी यहाँ, लक्ष्य जो था सबका दिल जीतने का।
अकेले चलो, गिरो, उठो और सीखो, आनंद लिया अपने जीवन के खट्टे-मीठे किस्सों का,
बातें जो छोटी-छोटी सी लगती थी, आज महत्वता सीखा रही थी जीवन का।
खड़े रहना सीखा अपने पैरों पर, आनंद उठाया अपने असफल प्रयासों का,
बनाती गई हर मुश्किलें इतना कठोर हमें, सीना बन गया जैसे पहाड़ों सा।
नासमझ सी बन गई इतनी अब समझदार, न रहा समय रिश्ते निभाने का,
बड़ी हो गई इतनी कि क़र्ज़ समझ आया उनके बड़प्पन का।
बनी जब माँ तब आई ममता समझ में, मोल समझा तब गुलाबों में छुपें काँटों का,
सफर न है आसान लेकिन पाठ पढ़ाया जिंदगी के इम्तिहानों का।
सही अर्थ में किया जब जिंदगी का सफर तय उनके बिना,
उनकी सिखाई हर बात याद आई, कहती है 'उन्नति' नहीं है 'उन्नति' उनके बिना।
न चूका पाएंगे कभी मोल इन उपकारों का
न चूका पाएंगे मोल कभी इस शिक्षण का।
बचपन से बड़े होने तक पल-पल मिलता है साथ माता-पिता का,
जब छूटता है यह हाथ तभी, इंसान जानता है रहस्य जिंदगी का।
