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Sanjana Kamat

Abstract

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Sanjana Kamat

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मेरा जीवन संघर्ष

मेरा जीवन संघर्ष

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गैरो मे क्या दम था,

मुझे तो अपनो ने ही लुटा.

चंद पैसो के खातिर,

खुन का रिश्ता भी छूटा.


जिन्के खुशिओ के लिए,

शादी करके चली गई ससुराल.

कोरोना की डर ने ली पती की जान,

बोले क्यु छिन्ती हो खुशी का माहोल.


शुरु हुवा मेरा जीवन संघर्ष,

खुन के रिश्तो मै बनी दरार.

अब राखी का रिश्ता भी तुटा,

इन्सानियत निगल गई यह करार.


क्या लेके आए इस जहॉं मैं,

कोई लेके भी न जा सखा.

जान के भी अनजानेसे रहते,

तकदीर का लिखा ना कोई मिटा सका।



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