मेरा घर
मेरा घर
कुछ यूं रूबरू हुआ कल ज़िन्दगी से,
निकला था चंद खुशियां बांटने ,
वापसी में खुशियों का खजाना था।
वो गांव था या घर मेरा, बसा प्यार मोहब्बत-सा गलियारा था
खिलते खेत-खलिहान, चहुँ ओर हरियाली का आशियाना था।
खिलखिलाती सरसों पर, इतराता वो प्यादा था
छाछ-मक्कई-घी-गुड़-माखन, ये पांच पकवानों का न्यौता था।
दिलों की बढ़ती मोहब्बत का, ये छोटा-सा तोहफ़ा था
हाँ कुछ यूँ रुख्सत हुआ जिंदगी से, वो गांव था घर मेरा।