मौंत पर कविता
मौंत पर कविता
हाथ होंगे नहीं जिनमें रेखा न हो,
बही खाता वो क्या जिसमें लेखा न हो,
मर गए ऐसे कोई नहीं शौक से,
मौत को जब तलक कोई देखा न हो।
लोग मारते हैं ताना कायदें के लिए,
क्यों न कोई मरे अच्छे ओहदे के लिए
देखा है हमनें भी इंसान कें अंदर झांक,
मर जाती इंसानियत फायदे के लिए।
कोई चलते चलते रूक जाता हैं,
खुशी देकर भी कोई बन गम जाता हैं,
कोई समझ पाये रास्ता हैं कहाँ तक,
सफर हैं अचानक ही थम जाता हैं।
किसी से सामना मुलाकात पर होगी,
दुश्मन पर नहीं नजर दोस्त पर होगी,
जिन्दगी की परवाह में यह मत भूलना,
यकिन जीवन पर नहीं मौंत पर होगी।