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Meera Kumar

Inspirational Others

4.5  

Meera Kumar

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मैं तुम पूरक से

मैं तुम पूरक से

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203


कोई भी जहाँ पूरा नहीं बिन तेरे,

खुद को भी कैसे तुमसे कम आँकूँ,

हमारे बग़ैर ये धरा अधूरा सा,

कैसे कह दूँ, मैं पुष्प पल्लवित बिन तेरे,

है हम एक गाड़ी के दो पूरक पहिये,

तुम्हारी पहली चेतना अगर है स्त्री,

हमारा अडिग छांव भी बस तुम ही हो,

तुमने एक मकान बनाया, छाया की पहल की,

हमने उसे घर बनाया, उस मधु शीतलता दी,

खुद के ख़्वाबों से उसे साकार किया,

बनते हो जब तुम कठोर वटवृक्ष,

बन तरूलता सी तुझमें लिपट, स्नेह अमृत पान देती हूँ,

वात्सल्य परायणता से एक सुखी संसार देती हूँ,


कितने लांछन, तिरस्कारित कर जाते हो,

हलाहल घूँट पी तेरे साथ ही खड़ी हो जाती हूँ,

सब कर सकते हो इस जगत में तुम,

फिर भी हमारे इक मुस्कान ख़ातिर इंतजार करते हो,

हमारे रंग भरे सपने, हमारी उम्मीदें तुम्हारी भी मंज़िल है,

देवी का दर्जा न दो हमें, हम है तेरे जिंदगी की रौनक,

हमारे बग़ैर आँगन सूना, सूने पूजा पाठ, सूनी बहार,

न ज़्यादा न कम हमेशा कंधा बराबर रहूँगी,

हमने सदा माना खुद का पूरक तुम्हें,

दे सकते इतना सा सम्मान दो,

बढ़ाओ हाथ भर दो अब हामी अपनी,

किस स्त्रीत्व की बात करूँ,

कोई भी जहाँ पूरा नहीं बिन तेरे



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