मेरे क़दम
मेरे क़दम
यूँ उठे मेरे क़दम हर दर दीवार
हर नफ़रत की दीवार लाँघ आई
अमन चैन की गुज़ारिश की मैंने
रंजिश की गुंजाईश तोड़ आई
इक दहलीज़ तो लांघी थी मैंने
लांछन को वरमाला पहना आई
अपनो के कटाक्ष को सींचा मैंने
अक्सर खुद के ज़ख़्म कुरेद आई
खामोशी में भी बहुत चीख़ा मैंने
अपने अंतर्मन को दबा कर आई
खुद के ज़ख़्म मरहम लगाया मैंने
अचरजता नजरो मे झाँक आई
जबतक चुप्पी से दर्द सहा मैंने
लोगों के दिलो मे ठिकाना कर आई
अपेक्षाओ को तोडा जुबान को खोला मैंने
दुनिया के नजरों में मैं दीवारें लाँघ आई।