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Meera Kumar

Inspirational

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Meera Kumar

Inspirational

अंतिम पथ

अंतिम पथ

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निश्वास हो चुकी, पार्थिव हुआ शरीर,

न जाने कुछ वेदना, संवेदना न हो रही महसूस,


खिलती कली,उन्मुक्त तितली, थी प्रेम वशीभूत,

आज शांत निर्विकार हूँ, प्रस्थान को तैयार हूँ,


कुछ वादे, अधूरे सपने, दिल पर कुंजी डाल खड़े है,

हूँ कुछ अचेत सी अन्नत यात्रा को तैयार हूँ,


मन की व्यथा,खामोशी मेरी सखा सी रही,

मन में बहुत सारी उम्मीदों, भीड़ में तन्हाईयाँ रही,


हूँ अब जगत से परे, विदा की तैयारी है अनूठी,

इच्छाओं पूर्ति को सब तत्पर है, पर क्या कुछ अनुभव है,


सारे अरमानों को तिलांजलि दी,अब चली उस वेदी,

निश्वास हो गई, हाँ जी जगत से बहुत दूर हो गई।


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