मैं माफ़ी माँगता हूँ
मैं माफ़ी माँगता हूँ
सब साथ रहें, सब साथ चले,
बस यही तो मैं चाहता हूँ...
इसीलिए, मैं माफ़ी माँगता हूँ....
मैं ही माफ़ी माँगता हूँ...
किसने क्या कहा, क्या सुना,
इससे सदा बेखबर रहा,
मैं तो निर्मल मन से रहा,
चाहे गाँव, चाहे शहर रहा,
चाह नहीं कुछ लेने की,
सब कुछ लुटाना चाहता हूँ...
इसीलिए, मैं माफ़ी माँगता हूँ...
मैं ही माफ़ी माँगता हूँ...
चार दिन की यह जिन्दगी,
साथ मिलकर गुजार दो,
रोने धोने से कुछ न होगा,
इसे प्रेम से ही सँवार दो,
आँसू किसी के न गिरे,
सबको हँसाना चाहता हूँ...
इसीलिए, मैं माफ़ी माँगता हूँ...
मैं ही माफ़ी माँगता हूँ...
जो हुआ सो हुआ,
अब उसे वहीं पर छोड़ दो,
नफ़रत की दीवारों को,
उसे वहीं ही तोड़ दो,
आप ही हैं सब कुछ,
अपने को मैं कुछ न मानता हूँ...
इसीलिए, मैं माफ़ी माँगता हूँ....
मैं ही माफ़ी माँगता हूँ...