आखिर वो कीड़े थे
आखिर वो कीड़े थे
उन कीडों को किसने देखा,
जिनके राह से होकर तू गुजरा,
वो एक नहीं, दो नहीं, ढेर सारे थे,
चल रहे थे साथ में, जा रहे किनारे थे,
तुम्हारे पैर की आवाज़ सुनकर,
वो कुछ कर पाते,पहले ही
किसी का हाथ,किसी का पैर,
किसी का साथ टूट गया,
तू तो अपनी धुन में था,
उनकी जिंदगी लूट गया,
वो दर्द से चीखते-चिल्लाते,
पर उनकी कौन सुनता,
आखिर वो कीड़े थे,
हे मानुष ! तू एक बात याद रख,
ये धरती गोल है, जहाँ से तू चलता है,
वहीं को तू जाता है,
यहाँ ऊँट भी कभी पहाड़ के नीचे आता है।