STORYMIRROR

सुरशक्ति गुप्ता

Abstract

4  

सुरशक्ति गुप्ता

Abstract

मैं और मां

मैं और मां

1 min
221

माँ के होठों की मैं लाली 

हूँ मैं अपने पिता की आंखों का नूर ,

नूर सजाए फिरते हैं 

एक दिन कर देंगे 


अपने से दूर ....

फिर मैं दूसरों के चरणों की 

पादुका बन जाऊँगी ,


जिसे न भरत उठाएंगे 

और न मैं सीताराम कहलाऊंगी।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract