STORYMIRROR

सुरशक्ति गुप्ता

Abstract

4  

सुरशक्ति गुप्ता

Abstract

मैं और मां

मैं और मां

1 min
234


माँ के होठों की मैं लाली 

हूँ मैं अपने पिता की आंखों का नूर ,

नूर सजाए फिरते हैं 

एक दिन कर देंगे 


Advertisement

nd-color: rgb(255, 255, 255);">अपने से दूर ....

फिर मैं दूसरों के चरणों की 

पादुका बन जाऊँगी ,


जिसे न भरत उठाएंगे 

और न मैं सीताराम कहलाऊंगी।


Rate this content
Log in

More hindi poem from सुरशक्ति गुप्ता

Similar hindi poem from Abstract