मैले हर्फ़
मैले हर्फ़
जिह्वा के सिक्के की, चित हो गई खामोशी, और पट बातें
बातें पानी हैं, बयार हैं, उड़े पंख फैला हर ओर
जैसे पर्दा हटा दो बातों से, तो फूट के हों सराबोर
और खामोशी कोई धातु, ठोस, अडिग, कठोर
वही अंधेरे की खुशी, भींच डालो परदे के छोर
खामोशी असीम भी है, बेपाट एक अथाह समंदर
मन जिसमें कोई नाविक, लहरों का नाच नाचता एक कलंदर
बातें कोई टापू के पेड़ सा, आसरा आश्रम तुम ही बताओ
हाँ छाँव ले लो कुछ देर, घर मगर नहीं बनाओ
बोलकर कोई बात, जैसे कुछ खो जाता है
वही जाना सा शब्द, मैला, अजनबी हो जाता है
कुछ जुबां तो बातें कलम से भी कहते हैं,
कवि शायद तभी अक्सर चुप चुप से रहते हैं|
तो फिर क्यों किसी शायर के छन्द चुरा लूँ?
क्यों किसी नर्तक के पैबंद चुरा लूँ?
क्यों मैं चुप्पी पिघला कर बातों में घोल दूँ?
फिर क्यों अपनी खामोशी को बेच बातों के मोल दूँ?