माता
माता
विधि सृष्टि अनुपम, नहीं कोई माता सम,
सुख दात्री हरदम, मान देवें नित हम।
माँ ने दिया नर तन, भरा फिर शुभ मन,
शुभ नीति दिया धन, माता सेवें नित हम।
कष्ट झेले माता खुद, सहने की नहीं हद,
महान है मातृ पद, कृपा पाए नित हम ।
रहती करुणामय, काटती है सब भय,
जग रचती अमिय, नहीं दुख देवें हम॥१॥
माता पहली शिक्षक, शिशु ज्ञान की पोषक,
आँचल की छाया रख, सदा सदा देती सुख।
धरना सिखाती पग, चलाती सुभग मग,
पाता शिशु महा *भग, रहे सदा दूर दुख ।
माता नेह की सागर, देती भर वो गागर,
शिशु पाता महासुख, आनंदित माता मुख।
बच्चे सेवें माता पद, मन रखें नहीं मद,
माता होवे गदगद, ऐसा रखें निज रुख॥२॥
*भग= ऐश्वर्य