MULA VEERESWARA RAO
Classics
खाने के लिए तीन रोटी है
खाने वाला चार है तो
जो बोलेगा
"मेरे को भूख नहीं है "
वो ज़रूर होगी
"मां"।
मृग तृष्णा
मां
ञीवन की राह म...
चाँद
गुमराह
महफ़िल
देश में जब छाएगी खुशहाली तभी तो मनेगी होली-दीवाली। देश में जब छाएगी खुशहाली तभी तो मनेगी होली-दीवाली।
सजग स्वयं के लिए अब भी ना हुए तो, अस्तित्वविहीन हो जाओगे। सजग स्वयं के लिए अब भी ना हुए तो, अस्तित्वविहीन हो जाओगे।
और तुम्हारे चले जाने में और व़क्त अभी बाकी था। और तुम्हारे चले जाने में और व़क्त अभी बाकी था।
आओ मुहब्बत में लोगों को आजमाया जाए गम कैसे भी हो उनको मिटाया जाए। आओ मुहब्बत में लोगों को आजमाया जाए गम कैसे भी हो उनको मिटाया जाए।
जब जब पतिव्रता कथन होय तब तब मां अनसुईया नाम जग लिन्हो। जब जब पतिव्रता कथन होय तब तब मां अनसुईया नाम जग लिन्हो।
अंगराज्य है भारत की, हमारी प्यारी असम प्रदेश।। अंगराज्य है भारत की, हमारी प्यारी असम प्रदेश।।
आजा पिया मैं पुकरूॅ॑ तुझको। बिरहिन पाती लिखती पिया को। आजा पिया मैं पुकरूॅ॑ तुझको। बिरहिन पाती लिखती पिया को।
खुल कर दिल की सारी बात करते हैं, चलो, फिर से ख़त इकबार लिखते हैं।" खुल कर दिल की सारी बात करते हैं, चलो, फिर से ख़त इकबार लिखते हैं।"
सबको ही भायेंगी उसकी अदाएँ। बहारें भी लेंगी फिर उसकी बलाएँ।। सबको ही भायेंगी उसकी अदाएँ। बहारें भी लेंगी फिर उसकी बलाएँ।।
इस सामाजिक असमानता को। दूर करने की कोशिश करते हैं।। इस सामाजिक असमानता को। दूर करने की कोशिश करते हैं।।
माता-पिता की सेवा में ये तो पाया गया अब ये ख़ज़ाना हमारा हो गया। माता-पिता की सेवा में ये तो पाया गया अब ये ख़ज़ाना हमारा हो गया।
परिश्रम पर अपने यकीं करो और इंसानियत से कभी दूर न हो। परिश्रम पर अपने यकीं करो और इंसानियत से कभी दूर न हो।
प्यासे परिंदों और वादियों को, अब बस बूंदों का इंतज़ार है। प्यासे परिंदों और वादियों को, अब बस बूंदों का इंतज़ार है।
खंडहर सा हो गया है यह जिस्म, अब तो रूह भी नया पता चाहती है। खंडहर सा हो गया है यह जिस्म, अब तो रूह भी नया पता चाहती है।
नये रूप में उभरी है वो मेरे लिए आज, कहलाती है मेरी, हाँ मेरी वो "हमराज"। नये रूप में उभरी है वो मेरे लिए आज, कहलाती है मेरी, हाँ मेरी वो "हमराज"।
यह ख्वाब हैं टूटे अगर तो हम भी बिखर जाएंगे। यह ख्वाब हैं टूटे अगर तो हम भी बिखर जाएंगे।
धरती माँ को तृप्त करें आओ मिलकर वृक्ष लगाएँ।। धरती माँ को तृप्त करें आओ मिलकर वृक्ष लगाएँ।।
तुझसे खफा हो के भी, तुझमें जीने की मयकशी ढूँढ लेते हैं। तुझसे खफा हो के भी, तुझमें जीने की मयकशी ढूँढ लेते हैं।
समय की रेत पर नहीं मिटते अपनों के जख्म के निशान। समय की रेत पर नहीं मिटते अपनों के जख्म के निशान।
सबने कहा आजकल तू, जरा बीमार सा लगता है। सबने कहा आजकल तू, जरा बीमार सा लगता है।