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Radha Goel

Abstract

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Radha Goel

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माँ

माँ

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इतने काम किस तरह करती, 

माँ अब तक मैं समझ न पाई। 


चेहरे पर कभी शिकन ना देखी।

हरदम बस ममता ही देखी। 

इतनी ममता लाई कहाँ से? 

इतना धीरज लाई कहाँ से?


एक टाँग पर फिरकी जैसी, 

सुबह-सुबह तू घूम रही है।

कभी नाश्ता कभी चाय,

कपड़े धोने को भिगो रही है।


कभी लगे आवाज इधर से,

कभी लगे आवाज उधर से। 

कोई कहता चाय बना दो, 

कोई कहे कि कॉफी दे दो।


दादा जी दलिया खायेंगे,

दादी खाएँ भरा पराँठा।

सबकी चाहत पूरी करनी,

तूने अपने मन में गाँठा।


तूने ममता खूब लुटाई,

पर तारीफ तनिक ना पाई।

सेवा करते जीवन बीता,

होठों पर उफ तक ना आई।


माँ तू मुझको जरा बता दे,

इतना धैर्य कहाँ से लाई ?

माँ तू ममता की मूरत है। 

माँ तुझमें रब की सूरत है।।


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