माँ
माँ
माँ, तू एक शब्द नहीं एक एहसास है।
बस मेरा देह ही नहीं, गिरवी तुझे मेरी सांस है।
माँ, तू एक रिश्ता नहीं एक जज़्बात है।
जिन्हें तू नसीब नहीं वह इंसान बर्बाद है।
माँ, तू बस तुझमें नहीं तू पूरी कायनात है।
तेरे बग़ैर ज़िन्दगी जैसे कोई ख़ैरात।
'माँ', यह शब्द ही तो है जिसपे बसी हर एक सांस है।
माँ, तेरे स्पर्श से ही जीवन, तेरी दुवाओं पे ही आस है।
