माँ
माँ
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तेरे अंग की देन ही नहीं
तेरी रूह की परछाई भी हूँ,
तेरी बेटी हूँ मैं माँ
तुझमे समायी सी हूँ।
नियति के कई खेल हैं
सदा साथ रहना बस में नहीं
तू बसी मुझमें इस कदर है
तुझे अलग हूँ कहना तो सही नहीं।
मेरे चेहरे में जो नूर है
उसमे तेरी ही झलक है
मेरे विचारों में भी माँ
तेरे जैसे ही ललक है।
टूटती हूँ, बिखरती हूँ
फिर खुद ही संभलती हूँ
ज़िन्दगी में अकेला हर कोई रहता है,
न जाने ये दिल कितना कुछ सहता है
डरती नही हूँ मैं,
क्योंकि तूने मुझे
अपने जैसा बनाया है
और मैने भी
खुद में तुझको पाया है।
जो प्यार तूने मुझ पर लुटाया है
वो मैं तुझ पर कभी न लुटा पाउंगी,
माँ की ममता को तो मैं
माँ बनकर ही जान पाऊँगी।